आस्था और भक्ति ईश्वर तक पहुंचने का सेतु है श्री महंत कमलेशानन्द सरस्वती महाराज
हरिद्वार खड़खड़ी स्थित श्री गंगा भक्ति आश्रम में अपने श्री मुख से उद्गार व्यक्त करते हुए परम पूज्य परम वंदनीय श्री महंत कमलेशानन्द सरस्वती महारा ने कहामानव जीवन में भक्ति और आस्था ऐसे दो दिव्य तत्व हैं, जो मनुष्य के भीतर शांति, संतुलन और सुन्दरता का संचार करते हैं। जब मनुष्य संसार की दौड़-धूप, तनाव, इच्छाओं और परेशानियों से घिर जाता है, तब भक्ति और आस्था ही उसे भीतर से जोड़ती हैं, संभालती हैं और सही दिशा दिखाती हैं। यह केवल धार्मिक भावना नहीं बल्कि आत्मा की वो पुकार है, जो हमें ईश्वर से, प्रकृति से और अपने आप से जोड़ती है।
भक्ति का अर्थ है—पूर्ण समर्पण और प्रेम से ईश्वर का स्मरण।
भक्ति में न कोई स्वार्थ होता है, न कोई सौदा।
यह केवल प्रेम और विश्वास का बंधन है।
भक्ति मन को कोमल बनाती है, अहंकार को मिटाती है और हृदय में दया, करुणा और सद्भावना जगाती है। जिस मनुष्य में भक्ति होती है, उसका व्यवहार सरल, विनम्र और मधुर होता है।
कबीरदास ने भी कहा है—
“प्रेमी भगति करैं दिन राती, मन तन अरपि देई।”
अर्थात सच्ची भक्ति वही है जिसमें प्रेम और समर्पण हो
आस्था वह विश्वास है जो हमें हर कठिनाई में सहारा देता है।
यह वह अदृश्य शक्ति है जिससे इंसान कहता है—
“हां, सब ठीक होगा… ईश्वर मेरे साथ है।”
जब आस्था दृढ़ होती है, तो जीवन की राहें आसान हो जाती हैं। श्री महंत कमलेशानंद सरस्वती महाराज ने कहा
आस्था मन को मजबूत बनाती है, विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत देती है और अंधेरे में भी उम्मीद का दीपक जलाती है।
आस्था का अर्थ अंधविश्वास नहीं है, बल्कि अंदर की वह रोशनी है जो इंसान को सही दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।
भक्ति और आस्था एक दूसरे के पूरक हैं।जहाँ आस्था विश्वास देती है, वहीं भक्ति उस विश्वास को प्रेम में बदल देती है।
आस्था कहती है—“ईश्वर है।”
भक्ति कहती है—“ईश्वर मेरे हैं।”
आस्था मन में स्थिरता देती है, जबकि भक्ति मन में मधुरताभरतीहै।
जब किसी मनुष्य के जीवन में भक्ति और आस्था दोनों होते हैं, तो उसका जीवन आनंद, संतोष और सकारात्मकता से भर जाता है।
भक्ति और आस्था का मन पर प्रभावमनशांतहोताहैचिंताऔरडरहते हैंजीवनकेप्रतिसकारात्मकदृष्टिकोता हैक्रोध,ईर्ष्या,घृणाजैसेनकारात्मकभाव कम होते हैंधैर्यऔरसहनशीलता बढ़ती है|सामाजिक व्यवहार सुधारता हैभक्ति मनुष्य को कोमल बनाती है और आस्था उसे मजबूत बनाती है।दोनों मिलकर मनुष्य को अंदर से संतुलित करते हैं।भारतीय संस्कृति में भक्ति कईरूपोंमेंकीजाती हैकीर्तनध्यान,ईश्वरकानाम,-स्मरणपूजा-पाठ,सेवा,दानईश्वर के प्रति प्रेमभावहर व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार भक्ति का मार्ग चुन सकता है।ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते अनेक हैं, परंतु मंज़िल एक ही है—शांति और आत्मिक संतुष्टि।समाज में भक्ति और आस्था की भूमिकाभक्ति और आस्था न केवल व्यक्तिगत जीवन को बल्कि पूरे समाज को भी एकजुट करती हैं।
जब लोग एक साथ भजन गाते हैं, मंदिर में प्रार्थना करते हैं या किसी धार्मिक आयोजन में भाग लेते हैं, तो वहाँ एक अद्भुत एकता और प्रेम का माहौल बनता है।भक्ति लोगों में प्रेम, दया, सहानुभूति और सह-अस्तित्व का संदेश देती है।आस्था समाज में नैतिकता और सदाचार को बढ़ावा देती है।भक्ति और आस्था केवल धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि जीवन का आधार हैं।ये दो शक्तियाँ मनुष्य को भीतर से जोड़ती हैं, संतुलन देती हैं और जीवन की कठिन राहों में सहारा बनकर साथ चलती हैं।जिस मनुष्य के हृदय में आस्था और भक्ति होती है, वह कभी अकेला नहीं होता—क्योंकि उसके साथ सदैव ईश्वर, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है|
 


