14 September 2025

सार्वभौमिक स्तर पर मानवाधिकारों का संरक्षण आवश्यक-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

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प्रमोद कुमार हरिद्वार 

ऋषिकेश 5 अप्रैल अंतर्राष्ट्रीय अंतरात्मा दिवस पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सर्वे भवन्तु सुखिनः और वसुधैव कुटुम्बकम् के दिव्य मंत्रों को आत्मसात करने का संदेश देते हुये कहा कि हमें शांति, स्वतंत्रता, न्याय, लोकतंत्र, सहिष्णुता और एकजुटता के सिद्धांतों को मूल में रखते हुये शांति की संस्कृति स्थापित करने हेतु मिलकर कार्य करना होगा। वैश्विक शान्ति की स्थापना हेतु आपसी समझ, सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के साथ अंतर-सांस्कृतिक संवाद स्थापित करने हेतु सभी को प्रयास करने की जरूरत है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि धरती पर जो भी जीव या जीवन है उन सभी को ‘‘न्याय, सहिष्णुता और शांति’’ के साथ जीवन जीने का अधिकार प्राकृतिक रूप से प्राप्त हैं इसलिये अपने विवेक को जागृत कर इस संस्कृति को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है। हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के लिये प्राकृतिक नियमों की अवहेलना नही ंकर सकते।
आज का दिन सार्वभौमिक स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण का संदेश देता है ताकि हमारे कर्मों व व्यवहार से किसी की भी अंतरात्मा आहत न हो। वर्तमान समय में भय मुक्त और अभाव मुक्त समाज के निर्माण की आवश्यकता है। साथ ही भविष्य की पीढ़ियों और राष्ट्रों को युद्ध के संकट से बचाने के लिए मानवाधिकार, सहिष्णुता, एकजुटता और शांति की संस्कृति को बढ़ावा देना वर्तमान समय की वैश्विक जरूरत है।
स्वामी जी ने कहा कि भारत, शान्ति की संस्कृति के लिये जीता है। भारत का नाम लेते ही भारत की स्वर्णिम आध्यात्मिक गाथा और एक शानदार युग याद आता है। इतिहास के किसी भी काल-खंड को देखंे तो भारत हमेशा से शान्ति की राह पर अग्रसर होता रहा है। चाहे वह भक्ति काल हो या पुनर्जागरण काल हो, भारत ने सबसे पहले शान्ति, सौहार्द, सहिष्णुता और सद्भाव को प्राथमिकता दी। भारतीय अध्यात्म, संस्कार, दर्शन, और संस्कृति हर युग में सृष्टि के शान्तिपूर्ण विकास के लिये ही थी। भारत पर अनेक बार आक्रमण हुये परन्तु उसका सामना हमेशा ही भारत ने डट कर किया और हमेशा मित्रता का हाथ आगे बढ़ाया।
आज भारत, नये भारत के निर्माण के दौर से गुजर रहा है। एक नई आबोहवा की तलाश में है। यूएई के अबूधाबी में निर्मित हिन्दू मन्दिर इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। यह केवल इंफ्रास्ट्रक्चर का नहीं बल्कि इन्ट्रास्ट्रक्चर का भी प्रतीक है।
भारत की संस्कृति भेदभाव की नहीं बल्कि एकात्म भाव की संस्कृति है; वाद-विवाद की नहीं बल्कि संवाद की संस्कृति है। ’’भारत इज नाॅट ए पीस आॅफ लैण्ड बट इज ए लैण्ड आॅफ पीस’’ इसलिये विश्व के सभी संस्कृतियों की झलक भारत में देखने को मिलती है, जो पूरे विश्व के लिये एक उदाहरण है; प्रेरणा है और एक मिसाल है।

 

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