मनुष्य द्वारा भजन किया जाना ईश्वर के प्रति समर्पण भाव को दर्शाता है और मन को कोमल कर लेना ईश्वर मय होना दर्शाता है श्री श्री आनंदमयी साधना मां

सम्पादक प्रमोद कुमार
हरिद्वार 20 अगस्त 2025 (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोजानंद ) दक्ष रोड कनखल स्थित श्री माधव आश्रम श्री श्री आनंदमयी कविता मां आश्रम में भक्तजनों के बीच ज्ञान का प्रवाह करते हुए परम तपस्विनी ज्ञान मूर्ति ज्ञान की गंगा श्री श्री आनंदमयी साधना मां ने कहा मनुष्य भगवान का भजन करता है इससे यह प्रतीत होता है की उसकी आस्था और समर्पण भाव ईश्वर के प्रति है भगवान आपके चढ़ाये गये मिष्ठान फूल या धन नहीं देखते सिर्फ आपकी श्रद्धा और समर्पण भाव देखते हैं ईश्वर के प्रति सच्चा समर्पण भाव ही ईश्वर की सच्ची आराधना है और यही सच्ची पूजा है अगर आप भजन पाठ पूजा नहीं कर सकते तो इस मन को ही निर्मल बना ले इसमें दूसरों के प्रति सम्मान का भाव दया भाव बसा ले यही सच्ची आराधना है ईश्वर सदैव इसी आराधना को स्वीकार करते हैं अगर आप यज्ञ अनुष्ठान भंडारे कर रहे हैं और आपके दरवाजे से कोई फटे हाल गरीब धितकार दिया जाता है तो यह सब निष्फल है भले ही यज्ञ न करें भंडारे ना करें किंतु किसी की भावना को कभी आहत न करें यही इंसानियत है और यही सच्ची आराधना अगर आप प्रेम नहीं बांट सकते तो द्वेष भाव भी किसी को देने के अधिकारी नहीं अगर इस मन को पावन करना चाहते हो और जीवन को धन्य करना चाहते हो तो मन की कठोरता को दूर करो उसमें निर्मलता धारण करो यही सच्ची आराधना है यही परम सुख प्रदान करने वाली पावन निधि है।