दीपावली के पावन पर्व पर परमार्थ निकेतन में विश्वभर से आये भारतीय परिवारों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में किया भव्य दीपोत्सव

सम्पादक प्रमोद कुमार
ऋषिकेश, 20 अक्टूबर। दीपों का पर्व दीपावली अपनी उजास से पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व की धरती पर रहने वाले भारतीयों के हृदय को आलोकित करें। परमार्थ निकेतन, भारत की संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म का एक जीवंत केन्द्र है, यहां पर आज दीपावली के अवसर पर गंगा तट पर भव्य और भावनाओं से परिपूर्ण दीपोत्सव किया। विश्व के अनेक देशों से आये भारतीय परिवारों ने पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में मां गंगा के पावन तट पर दीप प्रज्वलित कर दिव्य दीपोत्सव मनाया।
 
पर्व के अवसर पर मां लक्ष्मी जी और भगवान श्री गणेश जी का वेदमंत्रों व विधि विधान से पूजन किया गया। परमार्थ परिवार के सभी सदस्यों, एनआरआई परिवारों और देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में दीप जलाकर राष्ट्र समृद्धि, विश्व शांति और सर्व मंगल की कामना की।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने वैश्विक परिवार को दीपावली की शुभकामनायें देते हुये कहा कि भारत एक मजबूत देश है और उसकी असली शक्ति उसके मूल्यों, संस्कृति और संस्कारों में निहित है। हमारे एनआरआई भाई-बहनों ने इन मूल्यों को न केवल विदेशों में संजोकर रखा है, बल्कि उन्होंने भारतीय संस्कृति की सुगंध को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचाया है। इन परिवारों ने भारत का तिरंगा, संस्कृति और पर्वों को विदेश की धरती पर मजबूती से थामे रखा है, परमार्थ निकेतन हमेशा से उनके अपने घर जैसा है।
स्वामी जी ने बताया कि प्रवासी भारतीयों ने अपने अपने स्थान पर नदियों के तटों व मन्दिरों की स्थापना कर अपनी संस्कृति को जीवंत बनाये रखा है। स्पेन में रहने वाले एनआरआई भाई-बहनों ने वहां माह में एक बार गंगा जी की आरती का क्रम शुरू किया यह निश्चित ही गौरव का विषय है।
स्वामी जी ने कहा कि दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं, बल्कि यह अपनी जड़ों, अपनी माटी और अपने संस्कारों से जुड़ने का एक अद्भुत माध्यम है। जब हम पर्वों और त्यौहारों पर अपनों के बीच होते हैं, अपनी संस्कृति में रमे होते हैं, तो उसका आनंद शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि पर्वों को मनाने का उद्देश्य ही यह है कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को पुनः अपनी संस्कृति और संस्कारों से जोड़ें और यही इस दीपोत्सव का उद्देश्य है।
स्वामी जी ने कहा, “परमार्थ निकेतन भावनाओं और प्रेम से बना एक बड़ा परिवार है। यहां से हम सही मायने में अगली पीढ़ी को भारतीय संस्कार दे सकते हैं और उन्हें सिखा सकते हैं कि विदेश में रहकर भी भारत कैसे दिल में बसता है। दीपावली जैसे पर्व यही संदेश देते हैं कि हम जहाँ भी रहें, अपनी जड़ों से जुड़े रहें।”
आज दिव्य व भव्य गंगा आरती के साथ दीपों की अनगिनत ज्योतियों ने जैसे ही गंगा जी के पावन तट को आलोकित किया, सभी के हृदय श्रद्धा, भक्ति और एकता की तरंगों से आनंदित हो उठे।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति केवल पुस्तकों व शास्त्रों में नहीं, बल्कि लोगों के हृदयों में जीवित है। जब भारतीय परिवार विदेशों से लौटकर इस पवित्र भूमि पर पर्व मनाते हैं, तो वह केवल एक परंपरा नहीं निभाते वे अपनी अगली पीढ़ी को ‘भारतीयता’ की अमूल्य विरासत सौंपते हैं। यही दीपावली का संदेश है, अंधकार पर प्रकाश की विजय, विविधता में एकता के साथ संस्कार और संस्कृति का उज्ज्वल उत्सव है दीपावली।
स्वामी जी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि दीपावली, दीयों वाली हो, दीपावली स्वदेशी वाली हो इसका विशेष ध्यान रखे।
स्पेन से आये इस एनआरआई दल ने परमार्थ निकेतन में विशाल भंडारा किया स्वामी जी ने इस पूरे दल का संस्कृति व संस्कारों के संरक्षण व गंगा जी की ज्योति जलायें रखने हेतु उनका अभिनन्दन किया।