भाई- बहन के पवित्र प्रेम का पर्व है: समा चकेबा
सम्पादक प्रमोद कुमार
हरिद्वार । कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सामा-चकेवा पर्व का समापन हो रहा है। जिसमें भाई-बहन के पवित्र प्रेम की विदाई की जाएगी। यह पर्व भगवान कृष्ण की पुत्री सामा और उनके पति चकेवा की कहानी पर आधारित है, जिन्हें एक चुगला (चुगलखोर) की गलत आरोपों के कारण श्राप से पक्षी बनना पड़ा था। इस त्योहार को मनाने के लिए बहनें मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं और भाई-बहन के प्रेम को दर्शाने वाले गीत गाती हैं।
 
वहीं अंत में इन मूर्तियों को एक जलस्रोत्र में विसर्जित कर दिया जाता है। भगवान कृष्ण की पुत्री सामा और उनके पति चकेवा की कहानी पर यह पर्व आधारित है।एक दुष्ट व्यक्ति चुगला ने सामा पर झूठे आरोप लगाए, जिससे कृष्ण ने क्रोधित होकर उसे और चकेवा को पक्षी बनने का श्राप दिया। अपने भाई साम्ब के प्रेम और तपस्या से अंततः उन्हें पक्षी योनि से मुक्ति मिली। आचार्य पं. भोगेंद्र झा बताते हैं कि यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। कार्तिक पूर्णिमा को सामा-चकेवा की मूर्तियों को समदाउन या अन्य पारंपरिक गीत गाते हुए विदाई कर दी जाती है।
महिलाएं और लड़कियां पारंपरिक गीत गाते हुए इन मूर्तियों के साथ पवित्र नदी या तालाब में जाती हैं और उन्हें विसर्जित करती हैं। इस दौरान वे चुगला की जूट से बनी मूर्ति को जलाकर उसका भी विसर्जन करती हैं। इस पर्व में सामा-चकेवा के अलावा भी कई पात्रों की मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती हैं, जैसे- सतभइया, खंजन चिरैया, भरिया और ढोलिया। महिलाएं इन मूर्तियों को डालों में सजाकर सामूहिक रूप से गीत गाती हैं। यह पर्व भाई-बहन के बीच के अटूट प्रेम और बंधन को दर्शाता है। यह सामा चकेवा संस्कृति और पारिवारिक संबंधों की गहराई का प्रतीक है। यह रिश्ते को भी जोड़ता है। आचार्य पंडित धर्मेंद्र झा ने यह भी बताया कि सामा-चकेवा पर्व को लेकर ग्रामीण महिलाओं में खास उत्साह रहता है। इसकी शुरुआत छठ पर्व के दूसरे दिन खरना के दिन से होती है।


