गाय माता संपूर्ण विश्व के जनमानस के शरीर को सिंचती है श्री श्री जननी गौ सेवा संस्थान हजारों गाय माता का कर रहा संरक्षण अमीषा प्रशांत कुमार शुक्ला

सम्पादक प्रमोद कुमार
हरिद्वार (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोजानंद )भूपतवाला स्थित श्री स्वामीनारायण मंदिर आश्रम में गुजरात की पावन धरती से पधारे श्री प्रशांत कुमार शुक्ल गुजरात से अपने साथ लगभग 1000 लोगों को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कराकर उनके जीवन को कल्याण सुधा रस प्रदान कर रहे हैं उनके साथ अमीषा बेन प्रशांत कुमार शुक्ला तथा परिवार के अन्य सदस्य इस पावन कार्य में सहयोग हेतु पधारे हुए हैं प्रशांत भाई एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अमीषा बेन खुद अपने हाथों से बीमार गायों का इलाज करते हैं उनका गोबर उठाते हैं उन्हें भोजन करते हैं चारा खिलाते हैं उनकी देखभाल करते हैं लगभग 1200 गाय जो बीमार है विकलांग है वृद्ध है तथा आम जनमानस के लियें पूरी तरह अन उपयोगी है उन्हें संरक्षित करने का पुण्य अर्जित कर रहे हैं साथ ही पावन नगरी हरिद्वार की धरा पर हजारों लोगों के साथ पावन कथा का आयोजन कर उसका संपूर्ण श्रेय तथा पुण्य गाय माताओं को दे रहे हैं माता रुक्मणी की पावन जननी धरती गुजरात से गाय माता की सेवा का संकल्प लेकर संपूर्ण विश्व में धर्म की अलख जगाने चले हैं गौवत्स श्री प्रशांत भाई शुक्ला उन्हीं के पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अमीषा बेन शुक्ला उनके कदम से कदम मिलाकर अपने पुत्र पुत्री के साथ हर समय गौ माता की सेवा में समर्पित करती हैं उन्होंने गाय माताओं के लिए हॉस्पिटल का भी निर्माण किया है जिसमें जनरल वार्ड के साथ-साथ ओपीडी तथा आईसीयू रूम भी गाय माता की चिकित्सा हेतु उपलब्ध है सभी सेवा पूरी तरह निशुल्क तथा निस्वार्थ भाव से है प्रशांत भाई शुक्ला ने बताया भारतवर्ष की संस्कृति और परंपराओं में गाय माता का विशेष स्थान है। प्राचीन काल से ही गाय को माता के समान सम्मान दिया गया है, क्योंकि वह अपने दूध से संपूर्ण मानव जाति का पालन-पोषण करती है। हमारे शास्त्रों में भी गाय को “कामधेनु” कहा गया है, जो इच्छानुसार फल प्रदान करने वाली मानी गई है। गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, आस्था और जीवन का अभिन्न अंग है।
 
गाय का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत बड़ा है। गाय का दूध, दही, घी, मक्खन और छाछ शरीर को रोगमुक्त और स्वस्थ बनाते हैं। आयुर्वेद में गाय का दूध सर्वोत्तम आहार माना गया है। यह न केवल बच्चों के शारीरिक विकास में सहायक है, बल्कि बुजुर्गों के लिए भी अमृत समान है। गाय का घी हवन और यज्ञ में प्रयोग होता है, जिससे वातावरण शुद्ध होता है। वहीं, गोबर और गोमूत्र का उपयोग कृषि, औषधि और पर्यावरण शुद्धिकरण में किया जाता है।
गाय को “गौमाता” कहकर संबोधित करने का कारण यह है कि वह नि:स्वार्थ भाव से सभी को पोषण देती है। जैसे माता अपने बच्चे का पालन करती है, उसी प्रकार गाय संपूर्ण समाज का पोषण करती है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने इसे माता का दर्जा दिया। यही कारण है कि भारत में गौ-पूजन, गोवर्धन पूजा और गो-सेवा की परंपरा प्रचलित है।
गाय का महत्व ग्रामीण जीवन में और भी बढ़ जाता है। किसान के लिए गाय केवल दूध देने वाली पशु नहीं, बल्कि उसकी जीविका का आधार है। बैल जो खेती में मदद करते हैं, वे भी गाय से ही उत्पन्न होते हैं। गाय के गोबर से बने उपले ग्रामीण इलाकों में ईंधन का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त जैविक खेती में गोबर की खाद भूमि को उपजाऊ बनाती है।
गाय माता केवल भौतिक दृष्टि से ही उपयोगी नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। हमारे धर्मग्रंथों में कहा गया है कि सभी देवताओं का निवास स्थान गाय के भीतर है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ग्वालबाल रूप में गो-सेवा और गोपालन का आदर्श प्रस्तुत किया।
श्री मनीष रावल ने कहा आज के आधुनिक युग में जब लोग प्राकृतिक साधनों से दूर होते जा रहे हैं, तब गाय माता का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह हमें प्रकृति से जोड़ती है और हमें सिखाती है कि नि:स्वार्थ सेवा और दान का क्या महत्व है।
गाय माता केवल एक पशु नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की धरोहर है। उसका संरक्षण करना और उसकी सेवा करना हमारी जिम्मेदारी है। यदि हम गाय की रक्षा करेंगे तो न केवल हमारी परंपरा सुरक्षित रहेगी, बल्कि पर्यावरण और समाज भी स्वस्थ और समृद्ध बनेगा। इसलिए हमें सदैव यह संकल्प लेना चाहिए कि हम गाय माता की सेवा और सम्मान करेंगे। जिस प्रकार धरती मां संपूर्ण सृष्टि को सिंचती है इसी प्रकार गाय माता भी दूध देकर उससे हजारों प्रकार के व्यंजन मिष्ठान्न प्रदान करती हैं गोमूत्र पूजा आदि के साथ-साथ गंगाजल के लिए भी जहां गंगाजल नहीं होता उपयोग में लाया जाता है सभी देवी देवताओं का वास गाय माता के अंदर है गाय माता साक्षात कामधेनु स्वरुप बनकर इस पृथ्वी लोक पर मानव जाति के उद्धार के लियें अवतरित होती है श्री प्रशांत भाई तथा श्रीमती अमीषा शुक्ल प्रतिदिन गाय माता को संध्या आरती का श्रवण कराने के साथ-साथ उन्हें कथा आदि का श्रवण भी करते हैं जितनी पावन सोच उतने ही पावन विचार और उतना ही पावन सेवा का संकल्प हम सबको गौरव का एहसास कराता है कि हम लोगों के बीच इतना पावन संकल्प लेकर चलने वाले महामानव भी विद्यमान है।