12 September 2025

14 सितंबर को परंपराओं और संस्कारों की धरती मिथिला में पितृ पक्ष के दौरान जितिया पर्व मनाया जाएगा।

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सम्पादक प्रमोद कुमार

हरिद्वार। परंपराओं और संस्कारों की धरती मिथिला में पितृ पक्ष के दौरान जितिया पर्व मनाया जाता है। इसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं पुत्र की लंबी आयु के लिए रखती हैं। संतान प्राप्ति के लिए जितिया का व्रत रखा जाता है। इस व्रत की शुरुआत नहाय खाय से होती है। वहीं, समापन पारण से होता है। हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया मनाया जाता है। यह पर्व बिहार और झारखंड समेत नेपाल के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं।

 

इससे एक दिन पूर्व यानी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर नहाय-खाय मनाया जाता है। इस साल 13 सितंबर को नहाय खाय है। इस शुभ अवसर पर व्रती महिलाएं स्नान-ध्यान कर जीमूतवाहन जी की पूजा करती हैं। इसके बाद भोजन ग्रहण करती हैं। नहाय-खाय के दिन मडुआ की रोटी और नोनी की साग खाई जाती है। इसके साथ ही दही और पोहा (चूड़ा) भी खाया जाता है।

बताते चलें कि आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रविवार , 14 सितंबर को है। इसके लिए 14 सितंबर को जितिया का व्रत रखा जाएगा। कई बार तिथि में अंतर होने के चलते जितिया व्रत 36 घंटे का भी होता है। इस साल निर्जला व्रत एक दिन रखा जाएगा। वहीं, सूर्योदय से पहले व्रती सात्विक भोजन और जल ग्रहण करती हैं। उन्होंने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार, 15 सितंबर को देर रात 03 बजकर 06 मिनट पर अष्टमी तिथि का समापन होगा। इसके बाद नवमी तिथि शुरू होगी। जितिया व्रत का पारण नवमी तिथि पर किया जाता है। इस प्रकार 15 सितंबर को सूर्योदय के बाद व्रती पारण कर सकती हैं।

 

पंचांग

सूर्योदय – सुबह 06 बजकर 05 मिनट पर

सूर्यास्त – शाम 06 बजकर 27 मिनट पर

चन्द्रोदय- देर रात 11 बजकर 18 मिनट पर

चंद्रास्त- दोपहर 01 बजकर 11 मिनट पर

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 33 मिनट से 05 बजकर 19 मिनट तक

विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 20 मिनट से 03 बजकर 09 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त – शाम 06 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 51 मिनट तक

निशिता मुहूर्त – रात्रि 11 बजकर 53 मिनट से 12 बजकर 40 मिनट तक

निरंजनी अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संत स्वामी रामभजन वन बताते हैं कि

आश्विन माह का हर एक दिन खास होता है। इस माह के कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। वहीं, शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र मनाया जाता है। वहीं, शुक्ल पक्ष में दशहरा, एकादशी और शरद पूर्णिमा समेत कई प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं।

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