16 September 2025

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ’प्रेमयज्ञ’ के समापन अवसर पर सहभाग कर श्रद्धालुओं को किया सम्बोधित

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प्रमोद कुमार हरिद्वार

ऋषिकेष 16 मई। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गीता भवन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ’प्रेमयज्ञ’ में सहभाग कर गुजरात सहित देश के विभिन्न प्रदेशों से आये श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुये कहा कि श्रीमद् भागवत कथा, भक्ति मार्ग पर चलने का सबसे सहज पथ है। कथा श्रवण से प्रभु की भक्ति, भक्ति की षक्ति और फिर मुक्ति प्राप्त होती है।
श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह ’प्रेमयज्ञ’ श्री स्वामी मूर्तिमंत जी महाराज (जो कि गुजरात के 9 इस्काॅन टेम्पल्स के प्रमुख हैं) के मुखारविंद से हो रही है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारे शास्त्र हमें विविधता में एकता, प्रेम, शान्ति और एकजुटता के साथ रहने का संदेश देते हैं । आज ’इंटरनेशनल डे ऑफ लिविंग टूगेदर इन पीस’ के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि शांति से एक साथ रहने से तात्पर्य है आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर जीवन में आगे बढ़ते हुये दूसरों को सुनना व सम्मान करना है। जब तक हम दूसरों को सुनेंगे, समझेंगे व संवाद स्थापित नहीं करेंगे तब तक समस्याओं का समाधान प्राप्त नहीं हो सकता।
वर्तमान समय में बहुत जरूरी है व्यक्तियों और समुदायों के बीच शांति, सहिष्णुता, समावेशिता, समझ और एकजुटता को बढ़ाना। जब तक व्यक्ति, समाज, राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, आपसी सम्मान और सद्भाव स्थापित नहीं होता तब तक शान्ति की संस्कृति स्थापित नहीं की जा सकती।
स्वामी जी ने कहा कि शान्ति की स्थापना के लिये सांस्कृतिक पुलों को भी मजबूत करना होगा क्योंकि जैसे – जैसे सांस्कृतिक समझ बढ़ेगी वैसे-वैसे एक शान्तिपूर्ण, न्यायसंगत, समावेशी, टिकाऊ और सह-अस्तित्व से युक्त दुनिया का निर्माण सम्भव है। आज का दिन आपसी पूर्वाग्रहों और भेदभावों से उपर उठकर सहानुभूति और करुणा के महत्व को प्रतिबिंबित करता है।
कथा व्यास स्वामी श्री मूर्तिमंत जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा, वाणी को शुद्ध करती है, हमारे अन्तःकरण को पवित्र करती है और कथा का आयोजन हमारे धन को भी शुद्ध करता है। कथा, केवल श्रवण का नहीं बल्कि मनन और चितंन का षास्त्र है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा वर्तमान समय में पूरे वातावरण में तीन प्रमुख प्रदूषण व्याप्त है वाणी प्रदूषण, वायु प्रदूषण व वैचारिक प्रदूषण। वाणी व वैचारिक प्रदूषण का सामधान हमारे षास्त्रों और कथाओं ने निहित है, उनके उपदेशों को आत्मसात कर इन प्रदूषणों का शमण किया जा सकता है। वायु प्रदूषण के लिये हमें अपने व्यवहार पर ध्यान देना होगा। हमारे आस-पास व्याप्त सभी प्रकार के प्रदूषणों की शुरूआत हमारे दिमाग व विचारों से ही शुरू होती हैं, इसिलिये दिमाग में ही शांति की स्थापना व सुरक्षा के निर्माण का बीज डालना होगा। स्वामी जी ने कहा कि शांति केवल संघर्ष या युद्ध की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि करूणा, प्रेम और अपनत्व का विचार है जिसे पूर्ण रूप से आत्मसात कर एक सहिष्णुता युक्त वातावरण का निर्माण किया जा सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथा व्यास स्वामी श्री मूर्तिमंत जी महाराज को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।

 

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