फिल्म अभिनेत्री उर्मिला सुरेश राठौर सनावर ने पति सुरेश राठौर पूर्व विधायक के लिए रखा करवा चौथ व्रत ईश्वर से पति की लम्बी उम्र की कामना।

सम्पादक प्रमोद कुमार
हरिद्वार,धर्मनगरी हरिद्वार मे करवा चौथ पर्व धूमधाम से मनाया गया इस शुभ अवसर पर पूर्व विधायक सुरेश राठौर की धर्मपत्नी फिल्म अभिनेत्री श्रीमति उर्मिला सुरेश राठौर सनावर ने पुरे विधि विधान से अपने पति सुरेश राठौर के लिए व्रत रखा तथा ईश्वर से उनकी लम्बी आयु की कामना की। उन्होने सभी देश व प्रदेशवासियो को करवा चौथ पर्व की हार्दिक शुभकामनाए बधाई दी।
 
इस शुभ अवसर पर उर्मिला सुरेश राठौर सनावर ने बताया कि करवा चौथ भारतीय संस्कृति में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम, समर्पण और अटूट बंधन का प्रतीक है। करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। ‘करवा’ का अर्थ है मिट्टी का छोटा घड़ा (जिसका उपयोग पूजा में चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए किया जाता है), और ‘चौथ’ का अर्थ है चौथा दिन।यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
उन्होने बताया कि व्रत का उद्देश्य-पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए,अखंड सौभाग्य और पारिवारिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए,कुछ क्षेत्रों में कुँवारी कन्याएँ भी अच्छे वर की कामना से यह व्रत रखती हैं।
यह व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है। यह एक निर्जला व्रत होता है, जिसका अर्थ है कि व्रत रखने वाली महिलाएँ पूरे दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए उपवास करती हैं।
उन्होने बताया कि करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएँ दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार करती हैं। अनुष्ठान इस प्रकार किए जाते हैं: व्रत शुरू होने से पहले सूर्योदय से पूर्व सास अपनी बहू को सरगी देती है, जो एक पारंपरिक भोजन होता है।
इस भोजन में फल, मेवे, मिठाइयाँ और कुछ हल्का खाना शामिल होता है, जिसे खाकर महिलाएँ दिन भर के व्रत के लिए शक्ति प्राप्त करती हैं।
स्नान आदि के बाद महिलाएँ नए और शुभ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लेती हैं,शाम के समय, सामूहिक रूप से या घर पर पूजा की जाती है, जिसमें शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा की स्थापना की जाती है। इस दिन करवा माता की पूजा का भी विधान है। मिट्टी के करवे (घड़े) का विशेष महत्व होता है। इसमें जल भरकर, करवे के ऊपर सराई में चावल, मिठाई, और द्रव्य रखकर पूजा की जाती है। महिलाएँ एक-दूसरे के साथ मिलकर व्रत की कथा सुनती हैं। चंद्र दर्शन और व्रत खोलना
रात में चंद्रमा के उदय होने पर पूजा की जाती है। महिलाएँ छलनी से पहले चंद्रमा को देखती हैं और फिर उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसके बाद, चंद्रमा को अर्घ्य (जल अर्पित करना) दिया जाता है और पति की लंबी आयु की प्रार्थना की जाती है। अंत में, पति अपने हाथों से पत्नी को जल पिलाकर और पहला निवाला खिलाकर व्रत तोड़वाते हैं।
इस शुभ अवसर उन्होने करवा चौथ से जुड़ी कथाओ के बारे भी बताया कि करवा चौथ से कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती हैं:
* रानी वीरवती की कथा: यह कथा बताती है कि वीरवती के भाइयों ने उसके कष्ट को देखकर छल से नकली चाँद दिखाकर उसका व्रत तुड़वा दिया था, जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हो गई थी। बाद में, उसने अपनी सच्ची निष्ठा और तपस्या से पुनः अपने पति का जीवन वापस पाया।
* करवा की कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति को मगरमच्छ से बचाने के लिए यमराज को चेतावनी दी थी, जिसके बल पर उसके पति को नया जीवन मिला था।
* माता पार्वती की कथा: माना जाता है कि सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए यह व्रत रखा था, जिससे उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी।
* द्रौपदी की कथा: महाभारत काल में, द्रौपदी ने भी भगवान कृष्ण के कहने पर पांडवों के संकट से मुक्ति और उनकी रक्षा के लिए यह व्रत किया था।
यह पर्व भारतीय संस्कृति में प्रेम, त्याग और विश्वास का एक अनुपम उदाहरण है, जो पति-पत्नी के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है।