अगर मन में तृष्णा रखनी है तो भगवान भक्ति की रखो भगवान राम के मिलन की आस रखो श्री महंत कमलेशानंद सरस्वती

प्रमोद कुमार हरिद्वार
मनोज ठाकुर हरिद्वार खड़खड़ी स्थिति श्री गंगा भक्ति आश्रम में अपने श्री मुख से भक्तजनों के बीच उद्गार व्यक्त करते हुए आश्रम के श्री महंत परमाध्यक्ष 1008 श्री कमलेशानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा यह मन बड़ा ही चंचल होता है इसमें कुछ ना कुछ पाने की लालसा लगी रहती है किंतु मनुष्य को अपनी इच्छा शक्तियों पर अंकुश लगाते हुए मन को सीमाओं में बांधकर रखना चाहिए क्योंकि मन तो चलाये मान है इसकी गति पवन से भी तेज होती है साधक तथा बुद्धिजीवी लोग मन की इंद्रियों के घोड़े पर लगाम लगाते हुए इस चलाएं मान मन को बाध कर रखते हैं अगर तृष्णा मन में रखनी है तो भगवान भजन की रखो अगर तृष्णा मन में रखनी है तो भगवान राम के मिलन की रखो अगर तृष्णा मन में रखनी है तो भक्ति की रखो अगर तृष्णा मन में रखनी है तो अपने कल्याण की रखो अगर तृष्णा रखनी है तो हरि भजन के विमान में बैठकर भवसागर पार जाने की रखो और यह सब गुरु चरणों से ही संभव है गुरुदेव के चरण कमल ही मनुष्य को भवसागर पार करते हैं।