कामवासना से बचकर समाधि तक पहुंच पाना कदापि संभव नहीं महामंडलेश्वर श्री संजय गिरी महाराज

सम्पादक प्रमोद कुमार
हरिद्वार 9 फरवरी 2025 (वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर मनोज मनोजानन्द) कांगड़ी स्थित श्री सदगुरु आश्रम में अपने श्री मुख से उद्गार व्यक्त करते हुए जूना अखाड़े महामंडलेश्वर श्री संजय गिरी जी महाराज ने कहा मनुष्य का शरीर जिस काम से उत्पन्न हुआ है वह उस काम के विपरीत बहाव में कैसे बह सकता है क्योंकि उसकी उत्पत्ति कामवासना से हुई है इस सृष्टि में चाहे कोई विद्वान है चाहे कोई तपस्वी संत है या विदूषक है या आम आदमी सभी की उत्पत्ति का कारण कामवासना है जब दो शरीरों का मिलन हुआ तभी उनकी उत्पत्ति हुई इसलिये उसका चित् कभी बिना कामवासना के एकाग्र हो ही नहीं सकता अगर एकाग्रता चाहते हो तो अपने जीवन को इस शरीर के अनुकूल आवश्यकताओं की पूर्ति आवश्यक है अगर आप उनसे बचाना बता रहे हैं तो मिथ्या है प्राचीन काल में जितने भी बड़े-बड़े तपस्वी साधु संत ऋषि मुनि हुए हैं वे सब विवाहित थे उन्हें पता था कि उनकी उत्पत्ति काम से हुई है उसकी पूर्ति के बिना मन को एकाग्र करना संभव ही नहीं है जब तक यह शरीर और मस्तिष्क दूसरी वस्तुओं में भटकता रहेगा तब तक उसका चित् मस्तिष्क एकाग्र हो ही नहीं सकता अगर एकाग्रता चाहते हो तो इस शरीर की आवश्यकताओं की इसके अनुसार पूर्ति करनी ही होगी नहीं तो एकाग्रता का परपंच करना खुद को भी धोखा देना है और दूसरे को भी इसीलिये ग्रहस्त आश्रम को सबसे बड़ा आश्रम बताया गया है वही अन्य वैराग्य सन्यास सहित सभी आश्रमों की पूर्ति करता है जिससे मनुष्य की उत्पत्ति हुई है उसी द्वारा की खोज में वह ताउम्र लगा रहता है किंतु यह जीवन खत्म हो जाता है उसकी खोज कभी खत्म नहीं होती यह एक बहुत बड़ा रहस्य है मां कामाख्या का स्वरूप अत्यंत विकराल तथा अन सुलझा है केवल आराधना ही कर सकते हो खोज कभी पूरी नहीं होगी यही इस सृष्टि का सत्य है यही इस सृष्टि की उत्पत्ति का मार्ग है और ताउम्र इसी को खोजने में इसकी गहराइयों में जाने में बीत जाती है किंतु कभी खोज पूरी नहीं होती मनुष्य कभी गहराई नहीं नाप पता कभी इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाया नारी चंचला है उसके आकर्षण की गहराइयों से नहीं बच पाओगे और ना ही कोई बच पाया है।