डा0 उषा झा रेणू कृत काव्य संग्रह ‘छंद प्रभा’ का विमोचन

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सम्पादक प्रमोद कुमार

हरिद्वार/ देहरादून। हिन्दी साहित्य समिति एवं राष्ट्रीय कवि संगम देहरादून के संयुक्त तत्वाधान में आयोजि डा0 उषा झा रेणू कृत काव्य संग्रह ‘छंद प्रभा’ का विमोचन माननीय मुख्य अतिथि श्रीमती ऋतु खंडूड़ी भूषण अध्यक्ष विधानसभा उत्तराखंड ने किया। इस दौरान गणमान्य साहित्यकारों की उपस्थिति रही। होटल इंद्रलोक राजपुर रोड देहरादून में आयोजित विमोचन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए श्रीमती ऋतु खंडूरी ने कहा कि एक महिला कवियित्री द्वारा बहुत ही उत्कृष्ट रचना की गई है। इसमें समाज के हर पहलुओं को छुआ गया है। सामाजिक विसंगतियां, प्रकृति प्रेम, नारी उत्थान, पहाड़ों से पलायन, भक्ति प्रेम आदि पर आधारित रचनाएं दिल को छूने वाली हैं। मैं कवियित्री श्रीमती उषा झा को बधाई देती हूं। वे अनवरत लिखते रहें, जिससे पाठकों को उत्कृष्ट रचनाएं प्राप्त होती रहेगी। मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि लेखिका को मैं बधाई देना चाहती हूं। उन्होंने बड़े ही मनोयोग से हर पहलू को छूने का गंभीर प्रयास किया है। इससे पहले भी उनकी पुस्तक में रचनाओं में पलायन, प्रकृति प्रेम, सामाजिक विसंगतियां,नारी सशक्तीकरण आदि का वर्णन मिलता है। अपनी पुस्तक पर बोलते हुए कवियित्री उषा झा रेणू ने कहा कि छंद प्रभा काव्य संग्रह में छंदानुशासन का विधिवत पालन करते हुए कालजयी रचना प्रस्तुत की गई है। छंदो की शिल्प विधानों का उल्लेख और विधिवत पालन करते हुए कला पक्ष और और मानपक्ष का संयोग हुआ है।

 

साहित्यकार एवं कवि असीम शुक्ल ने भी पुस्तक के सभी पक्षों पर अपने विचार व्यक्त किये। डाक्टर राम विनय सिंह ने कहा कि मार्मिक, वर्णक, धनाक्षरी, गीतिका, हरि गीतिका, सवैया आदि का सृजन छंदों की सुदंरता अद्भुत है। छंदों का शिल्प विधान का उल्लेख भी सराहनीय है। डाक्टर सुधा रानी पांडेय ने छंदों पर विस्तार से अपने विचार रखे। प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल कुलपति दून विश्व विद्यालय ने कहा कि विभिन्न छंदों का प्रयोग बहुत ही सटीकता से किया गया है।छंदों के शिल्प विधान का उल्लेख भी सराहनीय है। इससे साहित्य कोष की अभिवृद्धि होगी तथा नये छंद लिखने वालों को प्रेरणा मिलेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता दून विश्वविद्यालय की कुलपति डॉक्टर सुरेखा डंगवाल ने की. डॉ राम विनय सिंह, सुधारानी पांडे, असीम शुक्ला आदि साहित्यकार मौजूद रहे.

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