निरंजनी अखाड़े की छावनी मे अखाड़े के पंचो द्वारा पट्टाभिषेक कर बनाये गये दो नये महामंडलेश्वर

प्रमोद कुमार सम्पादक
वरिष्ठ पत्रकार राकेश वालिया प्रयागराज,निरंजनी अखाड़े के पंच परमेश्वरो ने पट्टाभिषेक कर दो नये महामंडलेश्वर बनाये गए। यह निर्णय एक विशेष धार्मिक कार्यक्रम के दौरान लिया गया, जिसमें स्वामी सादिपेन्द्र गिरी महाराज नलखेड़ा बंगलामुखी पीठ और स्वामी जय गिरी महाराज संत को इस सम्मानित पद पर आसीन किया गया।
 
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा की आज निरंजनी अखाड़े की छावनी मे दो संतो कों महामंडलेश्वर बनाया गया हैं उन्होंने कहा की अखाड़ों के संत धर्म के प्रमुख प्रचारक होते हैं। अखाड़े विशेष रूप से हिंदू धर्म के भीतर धार्मिक और समाजिक गतिविधियों के केंद्र होते हैं, जहां साधु-संत एकत्र होते हैं। इन संतों का मुख्य उद्देश्य धार्मिक ज्ञान, ध्यान, साधना, और समाज में धर्म का प्रचार करना होता है। वे लोगों को धार्मिक शिक्षा देते हैं, त्याग और तपस्या का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं, और समाज में नैतिकता एवं धर्म की महत्वता को बताते हैं। उन्होंने कहा की अखाड़ों की परम्परा के अनुसार आज विधिविधान से मंत्रो का उच्चारण कर सारी औपचारिकताओं कों पूरा किया जाता हैं।
आनंद अखाड़ा पिठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालका नंद गिरी महाराज ने कहा की अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनाने की परंपरा बहुत पुरानी होती हैं । यह परंपरा विशेष रूप से हिंदू साधु-संतों के बीच प्रचलित है, जहां अखाड़े के पंचपरमेश्वरों (जो कि प्रमुख संत होते हैं) द्वारा किसी संत को महामंडलेश्वर का पद सबकी सहमति से प्रदान कर सकते है।उन्होंने कहा की महामंडलेश्वर का पद एक सम्मानजनक और महत्वपूर्ण पद होता है, जो साधु-संतों के बीच विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यह सम्मान उन संतों को दिया जाता है जो अपने धार्मिक जीवन, सेवा और साधना में उच्चतम मानक स्थापित कर लेते हैं।
निरंजनी अखाड़े के सचिव श्री महंत रामरतन गिरी माहराज ने कहा की अखाड़े न केवल धार्मिक गतिविधियों का संचालन करते हैं, बल्कि वे समाज में अच्छे आचरण और सामाजिक न्याय की दिशा में भी काम करते हैं। इनमें से कई संत समाज सुधारक भी होते हैं और जातिवाद, अंधविश्वास, और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उन्होंने कहा की सनातन धर्म में भगवा रंग का अत्यधिक महत्व है। भगवा रंग को शुद्धता, त्याग, तपस्या, और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। यह रंग विशेष रूप से हिंदू साधु-संतों द्वारा पहना जाता है, जो अपने जीवन में सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर साधना और तपस्या के माध्यम से परमात्मा के साथ एकात्मता की ओर अग्रसर होते हैं।उन्होंने कहा की भगवा रंग का संबंध भी सूर्य और अग्नि से है, जो शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसे तप और साधना के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जो व्यक्ति की आत्मा के शुद्धिकरण का संकेत है। भगवा रंग विशेष रूप से संतों और गुरुओं के पहनावे में देखा जाता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि वे आत्मसमर्पण, योग, और साधना के माध्यम से धार्मिक जीवन जी रहे हैं।
उन्होंने कहा की भगवा रंग सनातन धर्म के कई महत्वपूर्ण त्योहारों और अनुष्ठानों में भी प्रमुख रूप से प्रयोग होता है, और यह धार्मिक स्वीकृति और अधिकार का प्रतीक होता है।इस अवसर पर निरंजनी अखाड़े के सचिव श्री महंत रामरतन गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी चित्तप्रकाशनंद गिरी, महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानन्द गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी महेशानन्द गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानन्द सरस्वती ,महामंडलेश्वर स्वामी सुरेन्द्र गिरी , महामंडलेश्वर स्वामी राजेंद्र गिरी, महामंडलेश्वर माता सतीगिरी,महामंडलेश्वर निरंजन ज्योति,महामंडलेश्वर स्वामी तेजस्वीनी नन्द गिरी,महामंडलेश्वर स्वामी मनीषानन्द गिरी आदि के संग अनेको संत महापुरुष उक्त अवसर पर उपस्थित रहे।